सोशल मीडिया का हस्तक्षेप यानी, ठहरो कि जनता आती है
ग्वालियर में राहुल गांधी की रैली खत्म ही हुई थी कि मीनाक्षी लेखी का ट्वीट आ गया ‘माँ की बीमारी का नाम लेने पर तीन कांग्रेसी सस्पेंड कर दिए गए, अब राहुल गांधी वही कर रहे हैं।’ उधर दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी को चुनौती दी, मुझसे बहस करो। रंग-बिरंगे ट्वीटों की भरमार है। माना जा रहा है कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सोशल मीडिया का असर देखने को मिलेगा। इस साल अप्रेल में 'आयरिस नॉलेज फाउंडेशन और'इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया' ने 'सोशल मीडिया एंड लोकसभा इलेक्शन्स' शीर्षक से एक अध्ययन प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत की 543 में से 160 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिनके नतीजों पर सोशल मीडिया का प्रभाव पड़ेगा। सोशल मीडिया का महत्व इसलिए भी है कि चुनाव से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार पर रोक लगने के बाद भी फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग सक्रिय रहेंगे। उनपर रोक की कानूनी व्यवस्था अभी तक नहीं है। दिल्ली में ‘आप’ के पीछे सोशल मीडिया की ताकत भी है।
भारत में इंटरनेट सन 1995 में आया। उसी साल मोबाइल फोन सेवा भी शुरू हुई। इंटरनेट आने के पहले मार्च में सुप्रीम कोर्ट का हवाई तरंगों की मुक्ति के बारे में फैसला आया था। निजी समाचार चैनलों की क्रांति शुरू हुई थी, जो विद्रूपों के साथ जारी है। लगता है कि इंटरनेट कई कदम आगे जाएगा। दो साल पहले तक हमारे यहाँ इंटरनेट का मजाक बनाया जाता था। गाँवों में बिजली नहीं है, वहाँ इंटरनेट क्या करेगा?लैपटॉप-वितरण कार्यक्रमों की सफलता बताती है कि बदलाव हमारे अनुमानों से ज्यादा तेज है। गूगल के वैश्विक कार्याधिकारी अध्यक्ष एरिक श्मिट ने कुछ साल पहले कहा था कि आने वाले पांच से दस साल के भीतर भारत दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेट बाज़ार बनेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इंटरनेट पर जिन तीन भाषाओं का दबदबा होगा वे हैं- हिन्दी, मंडारिन और अंग्रेजी। भाषा एक माध्यम है। महत्वपूर्ण हैं वे प्रयोक्ता जो भाषा को बरतते हैं।
अंतरराष्ट्रीय एनालिटिक्स फर्म कॉमस्कोर के अनुसार इस साल के शुरू में भारत में तकरीबन साढ़े सात करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। हालांकि ‘ट्राई’ का अनुसार हमारे यहाँ इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद 31 मार्च 2013 को 17.4 करोड़ थी। कॉमस्कोर का अनुमान इसके मुकाबले काफी कम है। उसकी जानकारी पीसी के मार्फत इंटरनेट सर्फिंग की है। भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले आठ में से सात लोग अपने मोबाइल फोन से इंटरनेट सर्फ करते हैं। बहरहाल हाल में भारत ने इस साल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या के मामले में जापान को पीछे छोड़ते हुए चीन और अमेरिका के बाद तीसरा स्थान बना लिया है। हमारे इंटरनेट उपभोक्ताओं में तीन चौथाई की उम्र 35 साल से कम है। भारत की इंटरनेट-शक्ति को उसकी भावी शक्ल के नजरिए से भी देखना होगा।
सन 2020 में भारत दुनिया का सबसे बड़ा युवा देश होगा। तब भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 60 करोड़ से ऊपर होगी। इनमें से 30 करोड़ लोग हिन्दी तथा दूसरी भाषाओं में नेट सर्फ करेंगे। हमारे यहाँ इस वक्त मोबाइल फोन धारकों की संख्या 55 करोड़ से ज्यादा है। इनमें से तकरीबन 30 करोड़ ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय भाषाओं के लिए गूगल खासतौर से अनुसंधान कर रहा है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमआई) तथा मार्केटिंग रिसर्च से जुड़ी संस्था आईएमआरबी ने पिछले कुछ साल से भारतीय भाषाओं में नेट सर्फिंग की स्थिति पर डेटा बनाना शुरू किया है। इस साल जनवरी में जारी इनकी रपट के अनुसार भारत में तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोग भारतीय भाषाओं में नेट की सैर करते हैं। शहरों में तकरीबन 25 फीसदी और गाँवों में लगभग 64 फीसदी लोग भारतीय भाषाओं में नेट पर जाते हैं।
सही बात है कि गाँव अभी इंटरनेट से दूर हैं। पर हमें यूरोप के मुकाबले ज्यादा उन्नत तकनीक मिलेगी। नई तकनीक वहाँ जल्दी जाती है जहाँ शून्य है। यह बात हमने मोबाइल टेलीफोनी में देखी। गाँवों में बिजली से पहले मोबाइल फोन पहुँचे। छोटे इनवर्टर, सीएफएल और एलईडी बल्ब की तकनीक अभी महंगी है, पर यह गरीबों के घर पहुँच गई है। आप रात में कभी सब्जी मंडी जाएं तो पता लगेगा। सोशल मीडिया का महत्व भी बढ़ेगा। अभी बड़ी जनसभाएं इंटरनेट के सहारे नहीं होंगी, पर ट्विटर पर प्रेस कांफ्रेस होने लगी हैं। गूगल हैंगआउट हो रहे हैं।
इस साल 4 अप्रेल को राहुल गांधी के सीआईआई भाषण के बाद ट्विटर पर पप्पूसीआईआई के नाम से हैंडल तैयार हो गया। 8 अप्रेल को नरेन्द्र मोदी की फिक्की वार्ता के बाद फेकूइंडिया। पप्पू और फेंकू का संग्राम ट्विटर से फेसबुक पर और फेसबुक से ब्लॉगों पर जा पहुँचा है। बावजूद इस संग्राम के हमारे राजनेता अभी इसके आदी नहीं है। वे मोबाइल फोन के आदी भी नहीं थे। यह मीडिया सरकार को डराता है। हाँ अभी यह उच्छृंखल है। इसका नियमन नहीं है। पर इससे डरने की जरूरत क्या है? सरकार इसका फायदा उठाने की कोशिश क्यों नहीं करती?यह उन्हें जनता के करीब भी ले जा सकता है। कपिल सिब्बल का ट्विटर हैंडल नहीं है। वे ट्वीट नहीं करते। ट्विटर पर लालू यादव, मुलायम सिंह, मायावती और जे जयललिता उपस्थित नहीं हैं या निष्क्रिय हैं। ये सब ज़मीन के नेता हैं। ममता बनर्जी का अकाउंट है। उन्होंने इस साल 3 मार्च तक कुल 13 ट्वीट किए थे। वे आठ लोगों को फॉलो करती हैं और उनके 6,745 फॉलोवर हैं। राहुल गांधी तो भविष्य के नेता हैं। पर उन्होंने अब तक साढ़े छह सौ के आसपास ट्वीट किए हैं। केन्द्रीय मंत्रियों में सबसे सक्रिय हैं शशि थरूर। प्रियंका गांधी का भी ट्विटर अकाउंट है, पर उनकी सक्रियता और भी कम है। हालांकि खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी ने अब ट्विटर और फेसबुक का फायदा उठाने के लिए कदम उठाए हैं।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी गूगल 'हैंगआउट' करने वाले शुरुआती भारतीय राजनेता हैं। उनके पहले वित्तमंत्री पी चिदम्बरम ने 4 मार्च2013 को गूगल प्लस पर बजट को लेकर नागरिकों से वीडियो चैट किया था। राजनेताओं को तकनीक जनता के काफी करीब ले आई है,फिर भी भारत में बहुत कम नेता हैं जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर पा रहे हैं। ट्विटर पर 100 से अधिक राजनेताओं के हैंडल्स हैं,लेकिन नियमित ट्वीट करने वालों में सुब्रह्मण्यम स्वामी, शशि थरूर, उमर अब्दुल्ला, नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज, जय पांडा और विजय माल्या के बाद शायद ही किसी का नाम याद आता हो। लोकसभा और राज्यसभा में मिलाकर सात सौ के आसपास सांसद हैं, लेकिन ट्विटर पर मौजूद सांसदों की संख्या 100 भी नहीं होगी। है भी तो केवल नाम की।
भारत के नेताओं के फॉलोवरों की संख्या की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से करेंगे तो विस्मय होगा। ओबामा के ट्वीट तो 10,168 ही हैं, पर उनके फॉलोवरों की संख्या 3 करोड़, 83 लाख 53 हजार 325 है। वे 6,56,737 व्यक्तियों को फॉलो करते हैं। यकीनन यह काम वे अकेले नहीं कर सकते। पर वे अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। वहाँ केवल तकनीक के कारण ट्विटर महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि राज-व्यवस्था में नागरिक की उपस्थिति के कारण महत्वपूर्ण है। उनके मुकाबले डॉ मनमोहन सिंह ने 3993 ट्वीट किए हैं वे 52 व्यक्तियों को फॉलो करते हैं और उनके फॉलोवर हैं 8,41,847। उनसे बेहतर हैं शशि थरूर, जिन्होंने 19,726 ट्वीट किए हैं और वे 433 व्यक्तियों को फॉलो करते हैं। उनके फॉलोवर हैं 19,39,016। इनके मुकाबले नरेन्द्र मोदी ने 30,093 ट्वीट किए हैं, वे 795 व्यक्तियों को फॉलो करते हैं और उनके फॉलोवर हैं 25,75,937। मोदी कई भाषाओं में ट्वीट करते हैं उनके हिन्दी हैंडल से ट्वीट हुए हैं 557 फॉलो करते हैं 795 को और फॉलोवर हैं 32,426। जहाँ हमारे राजनेताओं के बारे में हम उनके फॉलोवरों की संख्या से अनुमान लगा रहे हैं वहीं वे किसको फॉलो करते हैं इससे उनकी पसंदगी का पता लगता है। बहुत गौर से देखें तो पाएंगे कि कांग्रेसी हो या भाजपाई सबका सामाजिक-सांस्कृतिक सम्पर्क एक जैसा है। मीडिया के चार-छह नाम हरेक की झोली में हैं। उनकी बातों में देशी भाषा, उसके मुहावरों और उसकी ज़रूरतों का अभाव है। पर सोशल मीडिया इक्वलाइजर है। समानता लाने का काम भी करेगा। भारतीय भाषाएं, भावनाएं और मुहावरे अपने आप आ जाएंगे। देखते रहिए।
(ट्विटर के आँकड़े 17 अक्तूबर शाम 6.30 बजे तक के हैं)
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